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Be your own Torch…

भगवान् बुद्ध मृत्युशैय्या पर अपनी अंतिम साँसे गईं रहे थे की तभी उन्होंने किसी के रोने की आवाज सुनी। उन्होंने अपने पास बैठे शिष्य आनंद से पूछा,”आनंद ये कौन रो रहा है ?”

आनंद गुरुचरणों में प्रार्थना करते हुए बोले,”हे भगवन ! भद्रक आपके अंतिम दर्शन की इच्छा ले कर आया है।”

भगवान् बुद्ध स्नेह से बोले,”…. तो उसे मेरे पास बुला लाओ। ”

समीप आते ही भद्रक भगवन के चरणों में गिरकर फूट फूट कर रोने लगा। भगवन के कारण पूछने पर भद्रक  दुखी स्वर में बोला,”हे भगवन जब आप हमारे बीच में नहीं होंगे तो हमारा पथ प्रदर्शन कौन करेगा, कौन दीपक बनकर हमारी अँधेरी राहो में हमको प्रकाश दिखायेगा ?”

भगवान बुद्धा भद्रक की बातें सुनकर मुस्कुराये उन्होंने स्नेह से भद्रक के सर पर हाथ रखा और समझाया,”भद्रक प्रकाश स्वयं तुम्हारे भीतर है उसे जगत में खोजने की आवश्यकता नहीं। वे अज्ञानी हैं जो इस प्रकाश को देवालयों , तीर्थों , कन्दराओं या गुफाओं में ढूढ़ते ढूढ़ते भटक जाते हैं और अंत में निराश हो जाते हैं। इसके विपरीत मन, वाणी और कर्म से एकनिष्ठ हो कर जो साधना में निरंतर लगे रहते हैं उनका अन्तः करन स्वयं दीप्त हो उठता है।”

“हे भद्रक ! ‘अप्प दीपो भव’ स्वयं दीपक बनो।”

ये ही भगवान् बुद्ध का जीवन दर्शन भी था, जिसका वे आजीवन प्रचार-प्रसार करते रहे।

शिक्षा : दुनिया का सारा का सारा प्रकाश तुम्हारे भीतर है, इसे अपने अंदर ही ढूढो तो तुम्हारे सारे रास्ते स्वयं प्रकाशित होने लगेंगे।

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